1. मूर्ख_कौन?
एक बहुत ही शानदार कहानी
किसी गांव में एक सेठ रहता था. उसका एक ही बेटा था, जो व्यापार के काम से परदेस गया हुआ था. सेठ की बहू एक दिन कुएँ पर पानी भरने गई. घड़ा जब भर गया तो उसे उठाकर कुएँ के मुंडेर पर रख दिया और अपना हाथ-मुँह धोने लगी. तभी कहीं से चार राहगीर वहाँ आ पहुँचे. एक राहगीर बोला, "बहन, मैं बहुत प्यासा हूँ. क्या मुझे पानी पिला दोगी?"
सेठ की बहू को पानी पिलाने में थोड़ी झिझक महसूस हुई, क्योंकि वह उस समय कम कपड़े पहने हुए थी. उसके पास लोटा या गिलास भी नहीं था जिससे वह पानी पिला देती. इसी कारण वहाँ उन राहगीरों को पानी पिलाना उसे ठीक नहीं लगा.
बहू ने उससे पूछा, "आप कौन हैं?"
राहगीर ने कहा, "मैं एक यात्री हूँ"
बहू बोली, "यात्री तो संसार में केवल दो ही होते हैं, आप उन दोनों में से कौन हैं? अगर आपने मेरे इस सवाल का सही जवाब दे दिया तो मैं आपको पानी पिला दूंगी. नहीं तो मैं पानी नहीं पिलाऊंगी."
बेचारा राहगीर उसकी बात का कोई जवाब नहीं दे पाया.
तभी दूसरे राहगीर ने पानी पिलाने की विनती की.
बहू ने दूसरे राहगीर से पूछा, "अच्छा तो आप बताइए कि आप कौन हैं?"
दूसरा राहगीर तुरंत बोल उठा, "मैं तो एक गरीब आदमी हूँ."
सेठ की बहू बोली, "भइया, गरीब तो केवल दो ही होते हैं. आप उनमें से कौन हैं?"
प्रश्न सुनकर दूसरा राहगीर चकरा गया. उसको कोई जवाब नहीं सूझा तो वह चुपचाप हट गया.
तीसरा राहगीर बोला, "बहन, मुझे बहुत प्यास लगी है. ईश्वर के लिए तुम मुझे पानी पिला दो"
बहू ने पूछा, "अब आप कौन हैं?"
तीसरा राहगीर बोला, "बहन, मैं तो एक अनपढ़ गंवार हूँ."
यह सुनकर बहू बोली, "अरे भई, अनपढ़ गंवार तो इस संसार में बस दो ही होते हैं. आप उनमें से कौन हैं?'
बेचारा तीसरा राहगीर भी कुछ बोल नहीं पाया.
अंत में चौथा राहगीह आगे आया और बोला, "बहन, मेहरबानी करके मुझे पानी पिला दें. प्यासे को पानी पिलाना तो बड़े पुण्य का काम होता है."
सेठ की बहू बड़ी ही चतुर और होशियार थी, उसने चौथे राहगीर से पूछा, "आप कौन हैं?"
वह राहगीर अपनी खीज छिपाते हुए बोला, "मैं तो..बहन बड़ा ही मूर्ख हूँ."
बहू ने कहा, "मूर्ख तो संसार में केवल दो ही होते हैं. आप उनमें से कौन हैं?"
वह बेचारा भी उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दे सका. चारों पानी पिए बगैर ही वहाँ से जाने लगे तो बहू बोली, "यहाँ से थोड़ी ही दूर पर मेरा घर है. आप लोग कृपया वहीं चलिए. मैं आप लोगों को पानी पिला दूंगी"
चारों राहगीर उसके घर की तरफ चल पड़े. बहू ने इसी बीच पानी का घड़ा उठाया और छोटे रास्ते से अपने घर पहुँच गई. उसने घड़ा रख दिया और अपने कपड़े ठीक तरह से पहन लिए.
इतने में वे चारों राहगीर उसके घर पहुँच गए. बहू ने उन सभी को गुड़ दिया और पानी पिलाया. पानी पीने के बाद वे राहगीर अपनी राह पर चल पड़े.
सेठ उस समय घर में एक तरफ बैठा यह सब देख रहा था. उसे बड़ा दुःख हुआ. वह सोचने लगा, इसका पति तो व्यापार करने के लिए परदेस गया है, और यह उसकी गैर हाजिरी में पराए मर्दों को घर बुलाती है. उनके साथ हँसती बोलती है. इसे तो मेरा भी लिहाज नहीं है. यह सब देख अगर मैं चुप रह गया तो आगे से इसकी हिम्मत और बढ़ जाएगी. मेरे सामने इसे किसी से बोलते बतियाते शर्म नहीं आती तो मेरे पीछे न जाने क्या-क्या करती होगी. फिर एक बात यह भी है कि बीमारी कोई अपने आप ठीक नहीं होती. उसके लिए वैद्य के पास जाना पड़ता है. क्यों न इसका फैसला राजा पर ही छोड़ दूं. यही सोचता वह सीधा राजा के पास जा पहुँचा और अपनी परेशानी बताई. सेठ की सारी बातें सुनकर राजा ने उसी वक्त बहू को बुलाने के लिए सिपाही बुलवा भेजे और उनसे कहा, "तुरंत सेठ की बहू को राज सभा में उपस्थित किया जाए."
राजा के सिपाहियों को अपने घर पर आया देख उस सेठ की पत्नी ने अपनी बहू से पूछा, "क्या बात है बहू रानी? क्या तुम्हारी किसी से कहा-सुनी हो गई थी जो उसकी शिकायत पर राजा ने तुम्हें बुलाने के लिए सिपाही भेज दिए?"
बहू ने सास की चिंता को दूर करते हुए कहा, "नहीं सासू मां, मेरी किसी से कोई कहा-सुनी नहीं हुई है. आप जरा भी फिक्र न करें."
सास को आश्वस्त कर वह सिपाहियों से बोली, "तुम पहले अपने राजा से यह पूछकर आओ कि उन्होंने मुझे किस रूप में बुलाया है. बहन, बेटी या फिर बहू के रुप में? किस रूप में में उनकी राजसभा में मैं आऊँ?"
बहू की बात सुन सिपाही वापस चले गए. उन्होंने राजा को सारी बातें बताई. राजा ने तुरंत आदेश दिया कि पालकी लेकर जाओ और कहना कि उसे बहू के रूप में बुलाया गया है.
सिपाहियों ने राजा की आज्ञा के अनुसार जाकर सेठ की बहू से कहा, "राजा ने आपको बहू के रूप में आने के ले पालकी भेजी है."
बहू उसी समय पालकी में बैठकर राज सभा में जा पहुँची.
राजा ने बहू से पूछा, "तुम दूसरे पुरूषों को घर क्यों बुला लाईं, जबकि तुम्हारा पति घर पर नहीं है?"
बहू बोली, "महाराज, मैंने तो केवल कर्तव्य का पालन किया. प्यासे पथिकों को पानी पिलाना कोई अपराध नहीं है. यह हर गृहिणी का कर्तव्य है. जब मैं कुएँ पर पानी भरने गई थी, तब तन पर मेरे कपड़े अजनबियों के सम्मुख उपस्थित होने के अनुरूप नहीं थे. इसी कारण उन राहगीरों को कुएँ पर पानी नहीं पिलाया. उन्हें बड़ी प्यास लगी थी और मैं उन्हें पानी पिलाना चाहती थी. इसीलिए उनसे मैंने मुश्किल प्रश्न पूछे और जब वे उनका उत्तर नहीं दे पाए तो उन्हें घर बुला लाई. घर पहुँचकर ही उन्हें पानी पिलाना उचित था."
राजा को बहू की बात ठीक लगी. राजा को उन प्रश्नों के बारे में जानने की बड़ी उत्सुकता हुई जो बहू ने चारों राहगीरों से पूछे थे.
राजा ने सेठ की बहू से कहा, "भला मैं भी तो सुनूं कि वे कौन से प्रश्न थे जिनका उत्तर वे लोग नहीं दे पाए?"
बहू ने तब वे सभी प्रश्न दुहरा दिए. बहू के प्रश्न सुन राजा और सभासद चकित रह गए. फिर राजा ने उससे कहा, "तुम खुद ही इन प्रश्नों के उत्तर दो. हम अब तुमसे यह जानना चाहते हैं."
बहू बोली, "महाराज, मेरी दृष्टि में पहले प्रश्न का उत्तर है कि संसार में सिर्फ दो ही यात्री हैं–सूर्य और चंद्रमा. मेरे दूसरे प्रश्न का उत्तर है कि बहू और गाय इस पृथ्वी पर ऐसे दो प्राणी हैं जो गरीब हैं. अब मैं तीसरे प्रश्न का उत्तर सुनाती हूं. महाराज, हर इंसान के साथ हमेशा अनपढ़ गंवारों की तरह जो हमेशा चलते रहते हैं वे हैं–भोजन और पानी. चौथे आदमी ने कहा था कि वह मूर्ख है, और जब मैंने उससे पूछा कि मूर्ख तो दो ही होते हैं, तुम उनमें से कौन से मूर्ख हो तो वह उत्तर नहीं दे पाया." इतना कहकर वह चुप हो गई.
राजा ने बड़े आश्चर्य से पूछा, "क्या तुम्हारी नजर में इस संसार में सिर्फ दो ही मूर्ख हैं?"
"हाँ, महाराज, इस घड़ी, इस समय मेरी नजर में सिर्फ दो ही मूर्ख हैं."
राजा ने कहा, "तुरंत बतलाओ कि वे दो मूर्ख कौन हैं."
इस पर बहू बोली, "महाराज, मेरी जान बख्श दी जाए तो मैं इसका उत्तर दूं."
राजा को बड़ी उत्सुकता थी यह जानने की कि वे दो मूर्ख कौन हैं. सो, उसने तुरंत बहू से कह दिया, "तुम निःसंकोच होकर कहो. हम वचन देते हैं तुम्हें कोई सज़ा नहीं दी जाएगी."
बहू बोली, "महाराज, मेरे सामने इस वक्त बस दो ही मूर्ख हैं." फिर अपने ससुर की ओर हाथ जोड़कर कहने लगी, "पहले मूर्ख तो मेरे ससुर जी हैं जो पूरी बात जाने बिना ही अपनी बहू की शिकायत राजदरबार में की. अगर इन्हें शक हुआ ही था तो यह पहले मुझसे पूछ तो लेते, मैं खुद ही इन्हें सारी बातें बता देती. इस तरह घर-परिवार की बेइज्जती तो नहीं होती."
ससुर को अपनी गलती का अहसास हुआ. उसने बहू से माफ़ी मांगी. बहू चुप रही.
राजा ने तब पूछा, "और दूसरा मूर्ख कौन है?"
बहू ने कहा, "दूसरा मूर्ख खुद इस राज्य का राजा है जिसने अपनी बहू की मान-मर्यादा का जरा भी खयाल नहीं किया और सोचे-समझे बिना ही बहू को भरी राजसभा में बुलवा लिया."
बहू की बात सुनकर राजा पहले तो क्रोध से आग बबूला हो गया, परंतु तभी सारी बातें उसकी समझ में आ गईं. समझ में आने पर राजा ने बहू को उसकी समझदारी और चतुराई की सराहना करते हुए उसे ढेर सारे पुरस्कार देकर सम्मान सहित विदा किया.
देवराज खींची
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान अजमेर
कहानी न .2
एक वृद्ध ट्रेन में सफर कर रहा था। वृद्ध ट्रेन में राम नाम की माला का जाप कर रहा था। संयोग से वह कोच खाली था। तभी अचानक 8 -10 लड़के उस कोच में आये और बैठ कर मस्ती करने लगे । एक ने कहा चलो जंजीर खीचते है । दूसरे ने कहा यहां लिखा है - 500रु जुर्माना और 6 माह की कैद । तीसरे ने कहा इतने लोग है चंदा करके 500 रु जमा कर देंगे। चन्दा किया गया तो 500 की जगह 1200 रु जमा हो गए। इसे पहले लड़के के जेब मे रख दिया गया । तीसरे ने कहा - जंजीर खीचते है अगर कोई पूछेगा तो कह देंगे बूढ़े ने खींची है। पैसे भी नही देने पड़ेंगे । अब बूढ़े ने हाथ जोड़ के कहा बच्चों मैने तुम्हारे क्या बिगड़ा है। मुझे क्यो फसा रहे हो ? लेकिन किसी को दया नही आई। जंजीर खीची गई ।
जंजीर खींचते ही टीटी सिपाही के साथ कोच में आया तो लड़कों ने एक स्वर में कहा - बुढे ने जंजीर खीची है। टीटी बूढ़े से - शर्म नही आती इस उम्र में ऐसी हरकत करते हुए। बूढ़े ने हाथ जोड़ कर कहा - हाँ साहब, मैंने जंजीर खिंची है, लेकिन मेरी भी बहुत मजबूरी थी । टीटी ने पुछा - क्या मजबूरी थी ? बूढ़े ने कहा मेरे पास केवल 1200 रु थे, जिसे इन लड़कों ने छीन लिया ओर इस लड़के की जेब मे रखे है । अब टीटी ने सिपाही से कहा इसकी तलाशी लो । जब सिपाही ने तलाशी ली तो लड़के की जेब से 1200रु बरामद हुए जो वृद्ध को वापस कर दिया गए और लड़कों को अगले स्टेशन पर पुलिस के हवाले कर दिया गया। ले जाते समय लड़कों ने वृद्ध की ओर देखा तो वृद्ध ने सफेद दाढ़ी में हाथ फेरते हुए कहा ये बाल यूँ ही सफेद नही हुए है।
कहानी न. 3
आज का लेख एक ऐसे परिंदे की उड़ान को समर्पित जिसके पास उड़ने के लिये पंख ही नहीं थे।
तस्वीर देवास के निवासी आशाराम की है।
जिस झोपड़ी के आगे आशाराम खड़ा है वास्तव में वही उसका निवास स्थान है। बगल में खड़े पिता पहले एक दिहाड़ी मजदूर थे और अब सड़कों पर पड़ा कचरा बीन कर उस बेच कर आजीविका चलाते हैं। वास्तविक बुनियादी हालात यह है के आशाराम को मिला के कुल 5 लोगों का परिवार है जिसमे माता पिता आशा राम और उसकी एक बहन और भाई है।
पिता रंजीत को किसी ने सलाह दी के लड़के को स्कूल में डाल दे। पढ़ लिख गया तो परिवार की दरिद्रता दूर कर देगा। पिता को बात जँच गयी और आशा राम को पड़ोस में स्थित सरकारी स्कूल में भर्ती करवा दिया गया। हर एक कक्षा में बेहतरीन अंकों से उत्तीर्ण होते आशा राम ने मन ही मन डॉक्टर बनने की ठान ली। एक दिन अपनी यह ख्वाहिश पिता से साँझा की तो ऐसा जवाब मिला जिसकी अपेक्षा नहीँ थी।
पिता ने कहा के वह दिन में कभी पचास रुपये कमाते हैं तो कभी सौ। ऐसा अक्सर होता है के परिवार में सभी को रात का खाना भी नसीब नहीं होता।
ऐसे में पढ़ाई का खर्च कौन उठायेगा?
एक परिंदा जो उड़ान भरने को था उसके पंख काट दिये गये। पिता ने वास्तविकता बयां की थी। गली गली कचरा बीन कर गुज़र बसर करते पिता की इच्छा तो थी के बेटा आगे बढ़े पर हालात ऐसे थे के वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे।
परन्तु आशा राम ने परिस्थितियों के आगे घुटने टेकने से मना कर दिया। दसवीं की परीक्षा में स्कूल में अव्वल रहे। एक दिन अपनी इच्छा को स्कूल के एक शिक्षक के साथ साँझा किया तो शिक्षक ने बताया के एक एनजीओ है जिसका नाम "दक्षणा फाउंडेशन" है। यह एनजीओ हर साल एक एंट्रेंस एग्जाम करता है।
जो छात्र इस एग्जाम को उत्तीर्ण कर लेता है उसकी मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी यह एनजीओ "मुफ्त" में करवाता है। शिक्षक ने कहा अगर आशा राम दक्षणा फाउंडेशन के यह एंट्रेंस टेस्ट उत्तीर्ण कर ले तो रास्ता आसान हो जायेगा।
आशा राम के लिये यह करो या मरो की स्थिति थी। दिन रात एक कर दिये गये। रात को झोंपड़ी में बिजली ना होने के कारण केरोसिन लैंप की व्यवस्था की। कई रातें बिना सोये गुज़री और अंततः एक शाम आशा राम को उसके सँघर्ष के परिणाम प्राप्त हुये।
दक्षणा फाउंडेशन ने राष्ट्र भर से कुल 75 बच्चों का चयन किया जिसमें से एक नाम आशा राम का भी था।
एक परिंदा अब उड़ने को तैयार था। दक्षणा फाउंडेशन की मदद से किताबें मिल गयी और उच्च स्तरीय कोचिंग भी उपलब्ध हो गयी।
इसी कोचिंग अकादमी में एक शिक्षक थे अमित कुमार।
अमित ने एक बार आशाराम से पूछा ले उसके पिता क्या करते हैं।
जवाब मिला "कचरा बीनते हैं।"
इस जवाब ने अमित को झकझोर कर रख दिया। उसके सामने एक नवयुवक खड़ा था जिसके परिवार के पास शाम के भोजन की व्यवस्था तक नहीं थी पर फिर भी वह अपनी बदहाल स्थिति के आगे हारने की बजाय एक वीर योद्धा की तरह लड़ रहा था।
अमित कुमार ने आशाराम से कहा वह इस जंग में उसके साथ है।
अमित ने अपनी सीमित तनख्वाह में से आशाराम के मेडिकल एंट्रेंस के फॉर्म भरवाये।
आशा राम अब दिन में करीबन 18 घँटे पढ़ रहे थे। बिना रुके बिना थके अपनी आर्थिक स्थिति की परवाह किये बिना यह परिंदा अब उड़ान भरने को तैयार था।
परीक्षा का दिन आ चुका था।
निडर और निर्भीक होकर आशाराम ने परीक्षा दी और वह लगभग आश्वस्त हो गये के उनकी कड़ी मेहनत ज़रूर रंग लायेगी।
उस दिन परिणाम आने वाला था। आशाराम अपनी झोपड़ी में बैठे उस पल का इंतज़ार कर रहे थे जो उनके जीवन को परिवर्तित करने वाला था।
अगले ही क्षण गुरु अमित कुमार मिठाई का डब्बा लेकर आते दिखाई दिये। आशाराम ने गुरु के पैर छुये तो अमित ने उन्हें गले लगा लिया।
राष्ट्र के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान एम्स की प्रवेश परीक्षा में आशाराम का 7०० रैंक था और ओबीसी कोटे में 141 रैंक था।
आशाराम उस दिन गुरु के गले लग कर खूब रोये। पिता रंजीत मां और भाईबहन भी इस क्षण अपनी अश्रुधारा नहीं रोक पाये।
एक झुग्गी में रहने वाला कचरा बीनने वाले का बेटा अपनी जिद से अपने लक्ष्य को भेद चुका था।
खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। यहाँ तक के मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी आशाराम की मेहनत और संकल्पशक्ति को सलाम किया।
शिवराज सिंह चौहान ने ना केवल आशाराम की फीस और अन्य खर्चे उठाने का निर्णय लिया बल्कि सरकारी स्कीम्स के अंतर्गत उनके परिवार के लिए पक्के मकान का प्रबंध भी करवा दिया।
जिले के डीसी शशिकांत पांडेय ने उन्हें 25 हज़ार की राशि भेंट की और प्रशंसा पत्र प्रदान किया।
आशाराम आज AIIMS जोधपुर में पढ़ रहे हैं और उनका लक्ष्य न्यूरोसर्जन बनने का है।
इस नवयुवक के सँघर्ष और संकल्प की जीवंत कथा को कुछ पंक्तियों में समेट रहा हूँ....
"मंजिलें उन्ही को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है....
पंखो से कुछ नहीं होता हौसलों से उडान होती है.....
हौसलों से उड़ान होती है"
कहानी न. 4
स्वयं को संगठन से जोड़िये*********
एक वन में बहुत बडा अजगर रहता था। वह बहुत अभिमानी और अत्यंत क्रूर था। जब वह अपने बिल से निकलता तो सब जीव उससे डरकर भाग खड़े होते। उसका मुंह इतना विकराल था कि खरगोश तक को निगल जाता था। एक बार अजगर शिकार की तलाश में घूम रहा था। सारे जीव अजगर को बिल से निकलते देखकर भाग चुके थे । जब अजगर को कुछ न मिला तो वह क्रोधित होकर फुफकारने लगा और इधर-उधर खाक छानने लगा। वहीं निकट में एक हिरणी अपने नवजात शिशु को पत्तियों के ढेर के नीचे छिपाकर स्वयं भोजन की तलाश में दूर निकल गई थी। अजगर की फुफकार से सूखी पत्तियां उडने लगी और हिरणी का बच्चा नजर आने लगा। अजगर की नजर उस पर पड़ी हिरणी का बच्चा उस भयानक जीव को देखकर इतना डर गया कि उसके मुंह से चीख तक ना निकल पाई। अजगर ने देखते-ही-देखते नवजात हिरण के बच्चे को निगल लिया। तब तक हिरणी भी लौट आई थी, पर वह क्या करती ? आंखों में आंसू भरके दूर से अपने बच्चे को काल का ग्रास बनते देखती रही। हिरणी के शोक का ठिकाना न रहा। उसने किसी-न किसी तरह अजगर से बदला लेने की ठान ली। हिरणी की एक नेवले से दोस्ती थी। शोक में डूबी हिरणी अपने मित्र नेवले के पास गई और रो-रोकर उसे अपनी दुखभरी कथा सुनाई। नेवले को भी बहुत दु:ख हुआ। वह दुख-भरे स्वर में बोला मित्र, मेरे बस में होता तो मैं उस नीच अजगर के सौ टुकडे कर डालता। पर क्या करें, वह छोटा-मोटा सांप नहीं है, जिसे मैं मार सकूं वह तो एक अजगर है। अपनी पूंछ की फटकार से ही मुझे अधमरा कर देगा। लेकिन यहां पास में ही चीटिंयों की एक बांबी हैं। वहां की रानी मेरी मित्र हैं। उससे सहायता मांगनी चाहिए। हिरणी निराश स्वर में विलाप किया “पर जब तुम्हारे जितना बडा जीव उस अजगर का कुछ बिगाडने में समर्थ नहीं हैं तो वह छोटी-सी चींटी क्या कर लेगी?” नेवले ने कहा 'ऐसा मत सोचो। उसके पास चींटियों की बहुत बडी सेना हैं। संगठन में बडी शक्ति होती हैं।' हिरणी को कुछ आशा की किरण नजर आई। नेवला हिरणी को लेकर चींटी रानी के पास गया और उसे सारी कहानी सुनाई। चींटी रानी ने सोच-विचार कर कहा 'हम तुम्हारी सहायता अवश्य करेंगे । हमारी बांबी के पास एक संकरीला नुकीले पत्थरों भरा रास्ता है। तुम किसी तरह उस अजगर को उस रास्ते पर आने के लिए मजबूर करो। बाकी काम मेरी सेना पर छोड़ दो। नेवले को अपनी मित्र चींटी रानी पर पूरा विश्वास था इसलिए वह अपनी जान जोखिम में डालने पर तैयार हो गया। दूसरे दिन नेवला जाकर सांप के बिल के पास अपनी बोली बोलने लगा। अपने शत्रु की बोली सुनते ही अजगर क्रोध में भरकर अपने बिल से बाहर आया। नेवला उसी संकरे रास्ते वाली दिशा में दौड़ाया। अजगर ने पीछा किया। अजगर रुकता तो नेवला मुड़कर फुफकारता और अजगर को गुस्सा दिलाकर फिर पीछा करने पर मजबूर करता। इसी प्रकार नेवले ने उसे संकरीले रास्ते से गुजरने पर मजबूर कर दिया। नुकीले पत्थरों से उसका शरीर छिलने लगा। जब तक अजगर उस रास्ते से बाहर आया तब तक उसका काफ़ी शरीर छिल गया था और जगह-जगह से ख़ून टपक रहा था। उसी समय चींटियों की सेना ने उस पर हमला कर दिया। चींटियां उसके शरीर पर चढकर छिले स्थानों के नंगे मांस को काटने लगीं। अजगर तडप उठा। अपने शरीर से खुन पटकने लगा जिससे मांस और छिलने लगा और चींटियों को आक्रमण के लिए नए-नए स्थान मिलने लगे। अजगर चींटियों का क्या बिगाडता? वे हजारों की गिनती में उस पर टूट पढ़ रही थीं। कुछ ही देर में क्रूर अजगर तडप-तडपकर दम तोड दिया।
सीख- संगठन शक्ति बड़े-बड़ों को धूल चटा देती है। क्योंकि
संगठन में - कायदा नहीं, व्यवस्था होती है।
संगठन में - सुचना नहीं, समझ होती है।
संगठन में - क़ानून नहीं, अनुशासन होता है।
संगठन में - भय नहीं, भरोसा होता है।
संगठन में - शोषण नहीं, पोषण होता है।
संगठन में - आग्रह नहीं, आदर होता है।
संगठन में - संपर्क नहीं, सम्बन्ध होता है।
संगठन में - अर्पण नहीं, समर्पण होता है।
इस लिए स्वयं को संगठन से जोड़े रखें।
संगठन सामूहिक हित के लिए होता है।
व्यक्तिगत स्पर्धा या अपनी धाक जमाने या अपना नाम चमकाने या राजनिती फायदे और स्वार्थ के लिए नही।
कहानी न. 5
एक अनोखा मुकदमा
न्यायालय में एक मुकद्दमा आया ,जिसने सभी को झकझोर दिया !अदालतों में प्रॉपर्टी विवाद व अन्य पारिवारिक विवाद के केस आते ही रहते हैं| मगर ये मामला बहुत ही अलग किस्म का था!
एक 60 साल के व्यक्ति ने ,अपने 75 साल के बूढ़े भाई पर मुकद्दमा किया था!
मुकदमा कुछ यूं था कि "मेरा 75 साल का बड़ा भाई ,अब बूढ़ा हो चला है ,इसलिए वह खुद अपना ख्याल भी ठीक से नहीं रख सकता मगर मेरे मना करने पर भी वह हमारी 95 साल की मां की देखभाल कर रहा है !
मैं अभी ठीक हूं, सक्षम हू। इसलिए अब मुझे मां की सेवा करने का मौका दिया जाय और मां को मुझे सौंप दिया जाय"।
न्यायाधीश महोदय का दिमाग घूम गया और मुक़दमा भी चर्चा में आ गया| न्यायाधीश महोदय ने दोनों भाइयों को समझाने की कोशिश की कि आप लोग 15-15 दिन रख लो!
मगर कोई टस से मस नहीं हुआ,बड़े भाई का कहना था कि मैं अपने स्वर्ग को खुद से दूर क्यों होने दूँ ! अगर मां कह दे कि उसको मेरे पास कोई परेशानी है या मैं उसकी देखभाल ठीक से नहीं करता, तो अवश्य छोटे भाई को दे दो।
छोटा भाई कहता कि पिछले 35 साल से,जब से मै नौकरी मे बाहर हू अकेले ये सेवा किये जा रहा है, आखिर मैं अपना कर्तव्य कब पूरा करूँगा।जबकि आज मै स्थायी हूं,बेटा बहू सब है,तो मां भी चाहिए।
परेशान न्यायाधीश महोदय ने सभी प्रयास कर लिये ,मगर कोई हल नहीं निकला!
आखिर उन्होंने मां की राय जानने के लिए उसको बुलवाया और पूंछा कि वह किसके साथ रहना चाहती है!
मां कुल 30-35 किलो की बेहद कमजोर सी औरत थी |उसने दुखी दिल से कहा कि मेरे लिए दोनों संतान बराबर हैं| मैं किसी एक के पक्ष में फैसला सुनाकर ,दूसरे का दिल नहीं दुखा सकती!
आप न्यायाधीश हैं , निर्णय करना आपका काम है |जो आपका निर्णय होगा मैं उसको ही मान लूंगी।
आखिर न्यायाधीश महोदय ने भारी मन से निर्णय दिया कि न्यायालय छोटे भाई की भावनाओं से सहमत है कि बड़ा भाई वाकई बूढ़ा और कमजोर है| ऐसे में मां की सेवा की जिम्मेदारी छोटे भाई को दी जाती है। फैसला सुनकर बड़े भाई ने छोटे को गले लगाकर रोने लगा ! यह सब देख अदालत में मौजूद न्यायाधीश समेत सभी के आंसू छलक पडे।
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर भाई बहनों में वाद विवाद हो ,तो इस स्तर का हो!
ये क्या बात है कि 'माँ तेरी है' की लड़ाई हो,और पता चले कि माता पिता ओल्ड एज होम में रह रहे हैं यह पाप है।धन दौलत गाडी बंगला सब होकर भी यदि मा बाप सुखी नही तो आप से बडा कोई जीरो(0)नही।
कहानी 6 : गड़बड़ कहाँ हुई
एक बहुत ब्रिलियंट लड़का था। सारी जिंदगी फर्स्ट आया। साइंस में हमेशा 100% स्कोर किया। अब ऐसे लड़के आम तौर पर इंजिनियर बनने चले जाते हैं, सो उसका भी सिलेक्शन IIT चेन्नई में हो गया। वहां से B Tech किया और वहां से आगे पढने अमेरिका चला गया और यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफ़ोर्निया से MBA किया।
अब इतना पढने के बाद तो वहां अच्छी नौकरी मिल ही जाती है। उसने वहां भी हमेशा टॉप ही किया। वहीं नौकरी करने लगा. 5 बेडरूम का घर उसके पास। शादी यहाँ चेन्नई की ही एक बेहद खूबसूरत लड़की से हुई।
एक आदमी और क्या मांग सकता है अपने जीवन में ? पढ़ लिख के इंजिनियर बन गए, अमेरिका में सेटल हो गए, मोटी तनख्वाह की नौकरी, बीवी बच्चे, सुख ही सुख।
लेकिन दुर्भाग्य वश आज से चार साल पहले उसने वहीं अमेरिका में, सपरिवार आत्महत्या कर ली. अपनी पत्नी और बच्चों को गोली मार कर खुद को भी गोली मार ली। What went wrong? आखिर ऐसा क्या हुआ, गड़बड़ कहाँ हुई।
ये कदम उठाने से पहले उसने बाकायदा अपनी wife से discuss किया, फिर एक लम्बा suicide नोट लिखा और उसमें बाकायदा अपने इस कदम को justify किया और यहाँ तक लिखा कि यही सबसे श्रेष्ठ रास्ता था इन परिस्थितयों में। उनके इस केस को और उस suicide नोट को California Institute of Clinical Psychology ने ‘What went wrong'? जानने के लिए study किया।
पहले कारण क्या था, suicide नोट से और मित्रों से पता किया। अमेरिका की आर्थिक मंदी में उसकी नौकरी चली गयी। बहुत दिन खाली बैठे रहे। नौकरियां ढूंढते रहे। फिर अपनी तनख्वाह कम करते गए और फिर भी जब नौकरी न मिली, मकान की किश्त जब टूट गयी, तो सड़क पर आने की नौबत आ गयी। कुछ दिन किसी पेट्रोल पम्प पर तेल भरा बताते हैं। साल भर ये सब बर्दाश्त किया और फिर पति पत्नी ने अंत में ख़ुदकुशी कर ली...
इस case study को ऐसे conclude किया है experts ने : This man was programmed for success but he was not trained, how to handle failure. यह व्यक्ति सफलता के लिए तो तैयार था, पर इसे जीवन में ये नहीं सिखाया गया कि असफलता का सामना कैसे किया जाए।
अब उसके जीवन पर शुरू से नज़र डालते हैं। पढने में बहुत तेज़ था, हमेशा फर्स्ट ही आया। ऐसे बहुत से Parents को मैं जानता हूँ जो यही चाहते हैं कि बस उनका बच्चा हमेशा फर्स्ट ही आये, कोई गलती न हो उस से। गलती करना तो यूँ मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया और इसके लिए वो सब कुछ करते हैं, हमेशा फर्स्ट आने के लिए। फिर ऐसे बच्चे चूंकि पढ़ाकू कुछ ज्यादा होते हैं सो खेल कूद, घूमना फिरना, लड़ाई झगडा, मार पीट, ऐसे पंगों का मौका कम मिलता है बेचारों को, 12th कर के निकले तो इंजीनियरिंग कॉलेज का बोझ लद गया बेचारे पर, वहां से निकले तो MBA और अभी पढ़ ही रहे थे की मोटी तनख्वाह की नौकरी। अब मोटी तनख्वाह तो बड़ी जिम्मेवारी, यानी बड़े बड़े targets।
कमबख्त ये दुनिया, बड़ी कठोर है और ये ज़िदगी, अलग से इम्तहान लेती है। आपकी कॉलेज की डिग्री और मार्कशीट से कोई मतलब नहीं उसे। वहां कितने नंबर लिए कोई फर्क नहीं पड़ता। ये ज़िदगी अपना अलग question paper सेट करती है। और सवाल, सब out ऑफ़ syllabus होते हैं, टेढ़े मेढ़े, ऊट पटाँग और रोज़ इम्तहान लेती है। कोई डेट sheet नहीं।
एक अंग्रेजी उपन्यास में एक किस्सा पढ़ा था। एक मेमना अपनी माँ से दूर निकल गया। आगे जा कर पहले तो भैंसों के झुण्ड से घिर गया। उनके पैरों तले कुचले जाने से बचा किसी तरह। अभी थोडा ही आगे बढ़ा था कि एक सियार उसकी तरफ झपटा। किसी तरह झाड़ियों में घुस के जान बचाई तो सामने से भेड़िये आते दिखे। बहुत देर वहीं झाड़ियों में दुबका रहा, किसी तरह माँ के पास वापस पहुंचा तो बोला, माँ, वहां तो बहुत खतरनाक जंगल है। Mom, there is a jungle out there।
इस खतरनाक जंगल में जिंदा बचे रहने की ट्रेनिंग बच्चों को अवश्य दीजिये।
बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार भी देना जरूरी है, हर परिस्थिति को ख़ुशी ख़ुशी धैर्य के साथ झेलने की क्षमता, और उससे उबरने का ज्ञान और विवेक बच्चों में होना ज़रूरी है।
बच्चे हमारे है, जान से प्यारे है।
🙏🙏🙏 PLZ TEACH CHILDREN'S HOW TO TACKLE FAILURES WITH PATIENCE, MEDITATION & INNER SILENCE.🙏🏻🌹🙏🏻
कहानी 7
बेटा घर में घुसते ही बोला , मम्मी कुछ खाने को दे दो यार बहुत भूख लगी है।
यह सुनते ही मैंने कहा, बोला था ना ले जा कुछ कॉलेज ! सब्जी तो बना ही रखी थी। बेटा बोला
यार मम्मी अपना ज्ञान ना अपने पास रखा करो। अभी जो कहा है वो कर दो बस और हाँ रात में ढंग का खाना बनाना। पहले ही मेरा दिन अच्छा नहीं गया है। कमरे में गई तो उसकी आंख लग गई थी। मैंने जाकर उसको जगा दिया कि कुछ खा कर सो जाए। चीख कर वो मेरे ऊपर आया कि जब आँख लग गई थी तो उठाया क्यों तुमने! मैंने कहा तूने ही तो कुछ बनाने को कहा था।
वो बोला मम्मी एक तो कॉलेज में टेंशन, ऊपर से तुम यह अजीब से काम करती हो। दिमाग लगा लिया करो कभी तो, तभी घंटी बजी तो बेटी भी आ गई थी। मैंने प्यार से पूछा, आ गई मेरी बेटी कैसा था आज का दिन, बैग पटक कर बोली, मम्मी आज पेपर अच्छा नहीं हुआ। मैंने कहा- कोई बात नहीं, अगली बार कर लेना।
मेरी बेटी चीख कर बोली अगली बार क्या रिजल्ट तो अभी खराब हुआ ना। मम्मी यार तुम जाओ यहाँ से। तुमको कुछ नहीं पता। मैं उसके कमरे से भी निकल आई। शाम को पतिदेव आए तो उनका भी मुँँह लाल था। थोड़ी बात करने की कोशिश की, जानने की कोशिश कि तो वो भी झल्ला के बोले, यार मुझे अकेला छोड़ दो।पहले ही बॉस ने क्लास ले ली है और अब तुम शुरू हो गई।
आज कितने सालों से यही सुनती आ रही थी। सबकी पंचिंंग बैग मैं ही थी। हम औरतें भी ना अपनी इज्ज़त करवानी आती ही नहींं। मैं सबको खाना खिला कर कमरे में चली गई।अगले दिन से मैंने किसी से भी पूछना कहना बंद कर दिया। जो जैसा कहता कर के दे देती। पति आते तो चाय दे देती और अपने कमरे में चली जाती। पूछना ही बंद कर दिया कि दिन कैसा था। बेटा कॉलज और बेटी स्कूल से आती तो मैं कुछ ना बोलती, ना पूछती। यह सिलसिला काफी दिन चला!
संडे वाले दिन तीनो मेरे पास आए और बोले तबियत ठीक है ना, क्या हुआ है इतने दिनों से चुप हो। बच्चे भी हैरान थे। थोड़ी देर चुप रहने के बाद में बोली। मैं तुम लोगो की पंचिंग बैग हूँ क्या, जो आता है अपना गुस्सा या अपना चिड़चिड़ापन मुझपे निकाल देता है। मैं भी इंतज़ार करती हूं तुम लोंगो का। पूरा दिन काम करके कि अब मेरे बच्चे आएंगे, पति आएंगे, दो बोल बोलेंगे प्यार के, और तुम लोग आते ही मुझे पंच करना शुरु कर देते हो।
अगर तुम लोगों का दिन अच्छा नहींं गया तो क्या वो मेरी गलती है, हर बार मुझे झिड़कना सही है कभी तुमने पूछा कि मुझे दिन भर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई। तीनो चुप थे। सही तो कहा मैंने दरवाजे पे लटका पंचिंग बैग समझ लिया है मुझे। जो आता है मुक्का मार के चलता बनता है। तीनों शरमिंदा थे। हर माँ, हर बीवी अपने बच्चों और पति के घर लौटने का इंतज़ार करती है। उनसे पूछती है कि दिन भर में सब ठीक था या नहीं,
लेकिन कभी-कभी हम उनको ग्रांटेड ले लेते हैं। हर चीज़ का गुस्सा उन पर निकालते हैं। कभी- कभी तो यह ठीक है लेकिन अगर ये आपके घरवालों की आदत बन जाए तो आप आज से ही सबका पंचिंंग बैग बनना बंद कर दें।
तुम!!! खुद को कम मत आँको, खुद पर गर्व करो। क्योंकि तुम हो तो थाली में गर्म रोटी है।
ममता की ठंडक है, प्यार की ऊष्मा है।
तुमसे घर में संध्या बाती है, घर घर है।
घर लौटने की इच्छा है... क्या बना है रसोई में आज झांककर देखने की चाहत है।
तुमसे पूजा की थाली है, रिश्तों के अनुबंध हैं पड़ोसी से संबंध हैं।
घर की घड़ी तुम हो सोना जागना खाना सब तुमसे है।
त्योहार होंगे तुम बिन, तुम्हीं हो दीवाली का दीपक
होली के सारे रंग विजय की लक्ष्मी, रक्षा का सूत्र हो तुम।
इंतजार में घर का खुला दरवाजा हो, रोशनी की खिडक़ी हो, ममता का आकाश तुम ही हो।
समंदर हो तुम प्यार का, तुम क्या हो खुद को जानो! उन्हें बताओ जो तुम्हें जानते नहीं
कहते हैं तुम करती क्या हो !!!
dke;kch 8
एक बार बादलों की हड़ताल हो गई बादलों ने कहा अगले दस साल पानी नहीं बरसायेंगे। ये बात जब किसानों ने सुनी तो उन्होंने अपने हल वगैरह पैक कर के रख दिये लेकिन एक किसान अपने नियमानुसार हल चला रहा था। कुछ बादल थोड़ा नीचे से गुजरे और किसान से बोले क्यों भाई पानी तो हम बरसाएंगे नहीं फिर क्यों हल चला रहे हो? किसान बोला कोई बात नहीं जब बरसेगा तब बरसेगा लेकिन मैं हल इसलिए चला रहा हूँ कि मैं दस साल में कहीं हल चलाना न भूल जाऊँ। अब बादल भी घबरा गए कि कहीं हम भी बरसना न भूल जाएं। तो वो तुरंत बरसने लगे और उस किसान की मेहनत जीत गई। जिन्होंने सब pack करके रख दिया वो हाथ मलते ही रह गए , सो लगे रहो भले ही परिस्थितियां अभी हमारे विपरीत है , लेकिन आने वाला समय निःसंदेह हमारे लिये अच्छा होगा ।
Moral of the story : --- कामयाबी उन्हीं को मिलती है जो विपरीत परिस्थितियों में भी मेहनत करना नहीं छोड़ते हैं।
जो पानी से नहाते
है वो लिवास बदल सकते हैँ
पर जो पसीने से नहाते है
वो इतिहास बदल सकते है।👍👍
vR;f/kd 9
सत्र की शुरुआत के पहले दिन, पहले ही पीरियड में जब शिक्षक अपना रजिस्टर लेकर कक्षा में दाखिल हुए तो वहाँ फ़क़त एकमात्र छात्र को देखकर
उनका ह्रदय अंदर ही अंदर गदगद हो गया परंतु अपनी कर्मठता दर्शाने के लिए उन्होंने अपनी भवों को तिरछा कर लिया और दो मिनट कक्षा में चहलकदमी करने के बाद उस छात्र से बोले, "32 बच्चे लिखे हैं इस रजिस्टर में और तुम कक्षा में अकेले हो। क्या पढ़ाऊँ तुम अकेले को? तुम भी चले जाओ।"
बालक तुरंत बोला, "सर, मेरे घर पर दूध का कारोबार होता है और 15 गायें हैं। अब आप एक पल के लिए फर्ज करो कि मैं सुबह उन पंद्रह गायों को चारा डालने जाता हूँ और पाता हूँ कि चौदह गाय वहाँ नहीं हैं तो क्या उन चौदह गायों के कहीं जाने की वजह से मैं उस पंद्रहवीं गाय का उपवास करा दूँ?"
शिक्षक को उस बालक का उदाहरण बहुत पसंद आया और उन्होंने अगले दो घण्टे तक उस बालक को अपने ज्ञान की गंगा से पूरा
सराबोर कर दिया और कहा,"तुम्हारी गायों वाली तुलना मुझे बहुत पसंद आयी थी। कैसा लगा मैं और मेरा पढ़ाना?"
बालक अदभुत था इसलिए तुरंत बोला,"सर, आपका पढ़ाना मुझे पसंद आया लेकिन आप पसंद नहीं आये।"शिक्षक ने तुरंत पूछा, "क्यों?"
बालक बोला, "चौदह गायों की गैर-हाज़िरी में पंद्रह गायों का चारा एक गाय को नहीं डालना चाहिये था।
कर्जवाली-लक्ष्मी-10
एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया।
दीदी मतलब उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी।
दीनदयाल जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले...हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में #दहेज की बात करने आ रहे हैं.. बोले... #_दहेज के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है.. बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी दहेज की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?" कहते कहते उनकी आँखें भर आयीं.. घर के प्रत्येक सदस्य के मन व चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...लड़की भी उदास हो गयी... खैर.. अगले दिन समधी समधिन आए.. उनकी खूब आवभगत की गयी.. कुछ देर बैठने के बाद लड़के के पिता ने लड़की के पिता से कहा" दीनदयाल जी अब काम की बात हो जाए.. दीनदयाल जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. जो आप हुकुम करें..
लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनदयाल जी मुझे दहेज के बारे बात करनी है!... दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जी....जो आप को उचित लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा.. समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा..... आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे... थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे.. मुझे सब स्वीकार है... पर कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना.. वो मुझे स्वीकार नहीं..
क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी "कर्ज वाली लक्ष्मी" मुझे स्वीकार नही... मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी.. दीनदयाल जी हैरान हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा.. शिक्षा-
कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें न ही कोई स्वीकार करे..
यह कहानी मेरी नही है, मैं यह भी नहीं जानता की यह किसने और कब लिखी है l मुझे अच्छी लगी
Story -11
चिड़ीमार तीतर बेच रहा था। उसके पास एक बड़ी सी जाली वाली बक्से में बहुत सारे तीतर थे.. और एक छोटे से बक्से में सिर्फ एक तीतर।
किसी ग्राहक ने उससे पुछा तीतर कितने का है? तो उसने जवाब दिया एक तीतर की कीमत 40 रूपये है!
ग्राहक ने दुसरे बक्से में जो तन्हा तीतर था। उसकी कीमत पूछी तो तीतर वाले ने जवाब दिया! अव्वल तो मैं इसे बेचना ही नहीं चाहूंगा लेकिन अगर आप लेने की जिद करोगे तो इसकी कीमत 500 रूपये होगी।
ग्राहक ने आश्चर्य से पुछा इसकी कीमत 500 रुपया क्यों! इस पर तीतर वाले का जवाब था ये मेरा अपना पालतू तीतर है। यह बाकी के तीतरो को जाल में फसाने का काम करता है और दूसरे सभी फंसे हुए तीतर है!
ये चीख पुकार करके दूसरे तीतरो को बुलाता है और दूसरे तीतर बिना सोचे समझे एक जगह जमा हो जाते है। मैं आसानी से शिकार कर पाता हूँ। इसके बाद फंसाने वाले तीतर को उसके मन पसंद की खुराक दे देता हूँ। जिससे ये खुश हो जाता है बस इस वजह से इसकी कीमत ज्यादा है।
बाजार में एक समझदार आदमी ने उस तीतर वाले को 500 रूपये देकर उस तीतर का सरे बाजार गर्दन उड़ा दिया!
किसी ने पुछा आपने ऐसा क्यों किया ?
उसका जवाब था,
"ऐसे जमीर फरोश को जिन्दा रहने का कोई हक़ नहीं जो अपने मुनाफे के लिए अपनी कौम को फंसाने का काम करे और अपने ही लोगो को धोखा देता है।"
🙏 बेटी 12
एक पिता ने अपनी बेटी की सगाई करवाई !
लड़का बड़े अच्छे घर से था तो पिता बहुत खुश हुए !! लड़के ओर लड़के के माता पिता का स्वभाव बड़ा अच्छा था ! तो पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया !! एक दिन शादी से पहले लड़के वालो ने लड़की के पिता को खाने पे बुलाया~~!! पिता की तबीयत ठीक नहीं थी फिर भी वह ना न कह सके ! लड़के वालो ने बड़े ही आदर सत्कार से उनका स्वागत किया~~!!
फ़िर लडकी के पिता के लिए चाय आई~~!! शुगर कि वजह से लडकी के पिता को चीनी वाली चाय से दुर रहने को कहा गया था~~!! लेकिन लड़की के होने वाली ससुराल घर में थे तो चुप रह कर चाय हाथ में ले ली~~!! चाय कि पहली चुस्की लेते ही वो चोक से गये ! चाय में चीनी बिल्कुल ही नहीं थी~~! और इलायची भी डली हुई थी !!
वो सोच मे पड़ गये कि ये लोग भी हमारी जैसी ही चाय पीते हैं~~!! दोपहर में खाना खाया वो भी बिल्कुल उनके घर जैसा, में आराम करने के लिए दो तकिये o पतली चादर ! उठते ही सोंफ का पानी पीने को दिया गया~~!! वहाँ से विदा लेते समय उनसे रहा नहीं गया तो पुछ बैठे ] मुझे क्या खाना है ~ ~!! क्या पीना है ~!!! मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है ~~~!!!!
ये परफेक्टली आपको कैसे पता है तो बेटी कि सास ने धीरे से कहा,
कि कल रात को ही आपकी बेटी का फ़ोन आ गया था~~!! ओर उसने कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं oks बोलेंगे कुछ नहीं ] प्लीज] अगर हो सके
तो
आप उनका ध्यान रखियेगा ! पिता की आंखों मे वहीँ पानी आ गया था~~!! लड़की के पिता जब अपने घर पहुँचे तो घर के हाल में लगी अपनी स्वर्गवासी माँ के फोटो से हार निकाल दिया~~!!
जब पत्नी ने पूछा कि ये क्या कर रहे हो ] तो लडकी क` पिता बोले -मेरा ध्यान रखने वाली मेरी माँ इस घर से कहीं नहीं गयी है~~!! बल्कि वो तो मेरी बेटी,
के
रुप में इस घर में ही रहती है !और फिर पिता की आंखों से आंसू झलक गये ओर वो फफक-फफक कर रो पड़े ~~!!
दुनिया में सब कहते हैं ना !कि बेटी है~~ ] एक दिन इस घर को छोड़कर चली जायेगी !मगर मैं दुनिया के सभी माँ-बाप से ये कहना चाहता हूँ~ कि बेटी कभी भी अपने माँ-बाप के घर से नहीं जातीबल्कि वो हमेशा उनके दिल में रहती है~!! बेटियां परिवार पर बोझ नही होती,
गर्व से कहो कि मैं एक बेटी का पिता हूं
सस्नेह जयभीम-13
६ दिसम्बर एक
दर्दभरी कहानी] ६ दिसम्बर १९५६ महापरिनिर्वाण दिवस ।
राजधानी दिल्ली, रात के १२ बजे थे! रात का सन्नाटा और अचानक दिल्ली मुम्बई नागपुर मे चारो और फोन की घंटीया बज उठी ! राजभवन मौन था संसद मौन थी राष्ट्रपती भवन मौन था
हर कोई कस्मकस्म मे था ! शायद कोई बडा हादसा हुआ था या किसी बड़े हादसे या आपदा से कम नही था ! कोई अचानक हमें छोडकर चले गये थे ! जिनके जाने से करोडो लोग दुःख भरे आँसुओं से विलाप कर रहे थे देखते ही देखते मुम्बई की सारे सड़के भीड से भर गयी पैर रखने की भी जगह नही बची थी मुम्बई की सड़को पर क्योंकि पार्थिव शरीर मुम्बई लाया जाना था ! और अंतिम संस्कार भी मुम्बई मे ही होना था! नागपुर कानपुर दिल्ली चेन्नाई मद्रास बेंगलौर पुणे नाशीक और पुरे देश से मुम्बई आने वाली रैलगाडीयो और बसो मे बैठने को जगह नही थी !
सब जल्द से जल्द मुम्बई पहोंचना चाहते थे और देखते ही देखते अरब सागर वाली मुम्बई जनसागर से भर गयी ! कौन थे ये शख्स जिनके अंतीम दर्शन की लालचा मे जन शैलाब रोते बिलखते मुम्बईकी ओर बढ़ रहा था ! देश मे ये पहला प्रसंग था जब बड़े बुजुर्ग छोटे छोटे बच्चो जैसे छाती पीट पीट कर रो रहे थे ! महिलाएँ आक्रोश कर रही थी और कह रही थी मेरे पिता चले गये मेरा बाप चला गया अब कौन है हमारा यहां
चंदन की चीता पर जब उसे रखा गया तो लाखो दिल रुदन से जल रहे थे ! अरब सागर अपनी लहरों के साथ किनारों पर थपकता और लौट जाता फिर थपकता फिर लौट जाता शायद अंतिम दर्शन के लिये वह भी जोर लगा रहा था ! चीता जली और करोडो लोगो की आंखे बरसने लगी ! किसके लिये बरस रही थी ये आंखे कौन थे न सबके पिता किसकी जलती चीता को देखकर जल रहे थे करोडो दिलो के अग्निकुन्ड कौन थे यहां जो छोड गये थे इनके दिलोमे आंधिया कौन थे वह जिनके नाम मात्र लेने से गरज उठती थी बिजलीया मन से मस्तिष्क तक दौड जाता था ऊर्जा का प्रवाह कौन थे वह शख्स जिसने छीन लिये थे खाली कासीन के हाथो से और थमा दी थी कलम लिखने के लिये ऐक नया इतिहास ! आंखो मे बसा दीये थे नये सपने होठो पे सजा दिये थे नये तराने धन्यौ से प्रवाहीत किया था स्वाभिमान !
अभिमान को दास्यता की ज़ंजीरें तोड़ने के लिये दिया प्रज्ञा का शस्त्र ! चीता जल रही थी अरब सागर के किनारे और देश के हर गांव के किनारे मे जल रहा था ऐक श्मशान हर ऐक शख्स मे और दील मे भी ! जो नही पहोंच सका था अरब सागर के किनारे टक टक देख रहा था वह उसकी प्रतिमा या गांव के उस ज़न्डे को जिसमे नीला चक्र लहरा रहा था या बैठा था भुख प्यास भूलकर अपने समूह के साथ उस जगह जिसे वह बौद्ध विहार कहता था ! क्यों गांव शहर मे सारे समूह भूखे प्यासे बैठे थे
उनकी चीता की आग ठंडी होने का इंतजार करते हुये कौनसी आग थी जो वह लगाकर चले गये थे क्या विद्रोह की आग थी या थी वह संघर्ष की आग भूखे नंगे बदनो को कपडो से ढकने की थी आग असमानता की धजीया उड़ाकर समानता प्रस्थापित करने की आग चवदार तालाब पर जलाई हुई आग अब बुजने का नाम नही ले रही थी ! धू - धू जलती मनुस्मृति धुंवे के साथ खतम हुई थी ! क्या यह वह आग थी जो जलाकर चले गये थे ! वह सारे ज्ञानपीठ स्कूल कोलेज मरभूमी जैसे लग रहे थे !
युवा, युवतियों की कलकलाहट आज मौन थी जिन्होंने हाथ मे कलम थमाई शिक्षा का महत्व समजाया जीने का मकसद दिया राष्ट्रप्रेम की ओत प्रोत भावना जगाई वह युगंधर प्रज्ञासूर्य काल के कपाल से ढल गये थे ! जिस प्रज्ञातेज ने चहरे पर रोशनीया बिखेरी थी क्या वह अंधेरे मे गुम हो रहे थे बडी अजीब कश्मकस थी भारत के महान पत्रकार अर्थशास्त्री दुरद्रष्टा क्या द्रष्टि से ओजल हो जायेंगे सारे मिलों पर ऐसा लग रहा था जैसे हड़ताल चल रही हो सुबह शाम आवाज़ देकर जगाने वाली धुंवा भरी चीमनीया भी आज चुप चाप थी खेतों मे हल नही चला पाया किसान क्यों सारे ऑफीस सारे कोर्ट सारी कचहरीया सुनी हो गयी थी जैसे सुना हो जाता है बेटी के बिदा होने के बाद बाप का आँगन ! सारे खेतीहर मजदूर किसान असमंजस मे थे ये क्या हुआ उनके सिर का सत्र छीन गया !वह जो चंदन की चीता पर जल रहे है उन्हो ने ही तो जलाई थी जबरान ज्योत मजदूर आंदोलन का वही तो थे आधुनिक भारत के मसीहा सारी मिलों पर होती थी जो हड़ताले आंदोलन अपने अधिकारो के लिये उसकी प्रेरणा भी तो वही थे !
जिसने मजदूरो को अपना स्वतंत्र पक्ष दिया और संविधान मे लिख दी वह सभी बाते जिन्होंने किसानो, खेतीहारो, मज़दूरो के जीवन मे खुशियां बिखेरी थी ! इधर नागपुर की दीक्षाभूमी पर मातम बस रहा था लोगो की चीखे सुनाई दे रही थी "बाबा चले गये हमारे बाबा चले गये आधुनिक भारत का वह सुपुत्र जिसने भारत मे लोकतंत्र का बिजारोपण किया था जिसने भारत के संविधान को रचकर भारत को लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया था ! हर नागरीक को समानता स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार दिया था वोट देने का अधिकार देकर देश का मालिक बनाया था क्या सचमुच वह शख्स नही रहे कोई भी विश्वास करने को तैयार नही था ! लोग कह रहे थे अभी तो यहां बाबा की सफेद गाडी रुकी थी बाबा गाडी से उतरे थे सफेद पोशाक मे देखो अभी तो बाबा ने पंचशील दिये थे 22 प्रतिज्ञाओ की गूंज अभी आसमान मे ही तो गूंज रही थी वो शांत होने से पहले बाबा शांत नही हो सकते !
भारत के इतिहास ने नयी करवट ली थी जन सैलाब मुम्बई की सड़को पर बह रहा था ! भारतीय संस्कृती मे तुच्छ कहलाने वाली नारी जिसे हिन्दु कोड बिल का सहारा बाबा ने देना चाहा और फिर संविधान मे उसके हक आरक्षित किये ऐसी माँ बहने लाखो की तादाद मे श्मशान भूमी पर थी !
यह भारतीय सड़ी गली धर्म परम्पराओ पर ऐक जोरदार तमाचा था क्योंकि जिन महिलाओ को श्मशान जाने का अधिकार भी नही था ऐसी लाखो महिलाएँ बाबा के अंतिम दर्शन को पहोंची थी जो अपने आप मे ऐक विक्रम था !
भारत के यह युगंधर
संविधान निर्माता
प्रज्ञातेज
प्रज्ञासूर्य
महासूर्य
कल्प पुरुष
नव भारत को नव चेतना देकर चले गये एक ऊर्जा स्त्रोत देकर समानता स्वतंत्रता, न्याय, बंधुता का पाठ पढाकर !
उस प्रज्ञासूर्य की प्रज्ञा किरणो से रोशन होगा हमारा देश
हमारा समाज और पुरे विश्वास के साथ हम आगे बढ़ेंगे हाथो मे हाथ लिये मानवता के रास्ते पर जहां कभी सूर्यास्त नही होंगा, जहां कभी सूर्यास्त नही होंगा, जहां कभी सूर्यास्त नही होगा !
जय भीम ..जय भीम ..जय भीम और केवल जय भीम
शत् शत् नमन .....
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,l ,u ,y] mn;iqj ls izkIr gqvk gsS k vknj.kh; pUnsy lkgkc us vius 'kCnksa esa bl iwjs ys[k dks cgqr gh
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कहानी-स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन 14💐
✍ एक बार एक गाँव में पंचायत लगी थी। वहीं थोड़ी दूरी पर एक संत ने अपना बसेरा किया हुआ था।
जब पंचायत किसी निर्णय पर नहीं पहुच सकी, तो किसी ने कहा कि क्यों न हम महात्मा जी के पास अपनी समस्या को लेकर चलें ,अतः सभी संत के पास पहुंचे।जब संत ने गांव के लोगों को देखा तो पूछा कि कैसे आना हुआ ?
तो लोगों ने कहा महात्मा जी गाँव भर में एक ही कुआँ हैं और कुँए का पानी हम नहीं पी सकते, बदबू आ रही है। मन भी नहीं होता पानी पीने को।
संत ने पूछा :- हुआ क्या ? पानी क्यों नहीं पी रहे हो ?लोग बोले :- तीन कुत्ते लड़ते लड़ते उसमें गिर गये थे। बाहर नहीं निकले, मर गये उसी में। अब जिसमें कुत्ते मर गए हों, उसका पानी कौन पिये महात्मा जी ?संत ने कहा :-- एक काम करो , उसमें गंगाजल डलवाओ।तो कुएं में गंगाजल भी आठ दस बाल्टी छोड़ दिया गया , फिर भी समस्या जस की तस !लोग फिर से संत के पास पहुंचे,
अब संत ने कहा :- भगवान की पूजा कराओ।लोगों ने कहा ••••ठीक है।भगवान की पूजा कराई , फिर भी समस्या जस की तस, लोग फिर संत के पास पहुंचे!अब संत ने कहा :- उसमें सुगंधित द्रव्य डलवाओ।
लोगों ने फिर कहा ••••• हाँ,
अवश्य।सुगंधित द्रव्य डाला गया। नतीजा फिर वही... ढाक के तीन पात।लोग फिर संत के पास गए,अब संत खुद चलकर आये।लोगों ने कहा :- महाराज ! वही हालत है, हमने सब करके देख लिया। गंगाजल भी डलवाया, पूजा भी करवायी, प्रसाद भी बाँटा और उसमें सुगन्धित पुष्प और बहुत चीजें डालीं। लेकिन महाराज ! हालत
वहीं की वहीं ।
अब संत आश्चर्यचकित हुए कि अभी भी इनका कार्य ठीक क्यों नहीं हुआ?तो संत ने पूछा :- तुमने और सब तो किया, वे तीन कुत्ते मरे पड़े थे, उन्हें निकाला कि नहीं?लोग बोले :- उनके लिए न आपने कहा था, न हमने निकाला, बाकी सब किया। वे तो वहीं के वहीं पड़े हैं।
संत बोले :-- जब तक उन्हें नहीं निकालोगे, इन उपायों का कोई प्रभाव नहीं होगा।सही बात यह है कि हमारे आपके जीवन की भी यही कहानी है।इस शरीर नामक गाँव के अंतः करण के कुएँ में ये काम, क्रोध और लोभ के तीन कुत्ते लड़ते झगड़ते गिर गये हैं। इन्हीं की सारी बदबू है।
हम उपाय पूछते हैं तो लोग बताते हैं :-- तीर्थ यात्रा कर लो, थोड़ा यह कर लो, थोड़ा पूजा करो, थोड़ा पाठ। किसी नदी में नहा लो, हम सब करते हैं, पर बदबू उन्हीं दुर्गुणों की आती रहती है। 👉 कथा सार :- blfy, lcls igys gesa vius eu esa cSBs Hk; ls fuiVuk gksxk tks
gesa ,d LoPN igy djus ls vius ifjokj ds
izfr vk’kafdr dj jgk gS D;ksafd dksbZ Hkh ,slk ifjokj ugha gksxk tks vius ?kj
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cus] tksa lekt dks ubZ fn’kk nsdj oDr ds lkFk vius cPpksa o ifjokj ds fy,
mi;ksxh lkfcr uk gks ldsA blfy, b/kj m/kj ds ika[k.Mksa ds ckjs esa lkspus से बेहतर है कि पहले अपने आप पर ध्यान
दें। खुद में बदलाव लाऐं।
मुस्कुराइए :: 15
एक औरत बहुत महँगे कपड़े में अपने मनोचिकित्सक के पास गई और बोली
"डॉ साहब ! मुझे लगता है कि मेरा पूरा जीवन बेकार है, उसका कोई अर्थ नहीं है। क्या आप मेरी खुशियाँ ढूँढने में मदद करेंगें?"
मनोचिकित्सक ने एक बूढ़ी औरत को बुलाया जो वहाँ साफ़-सफाई का काम करती थी और उस अमीर औरत से बोला - "मैं इस बूढी औरत से तुम्हें यह बताने के लिए कहूँगा कि कैसे उसने अपने जीवन में खुशियाँ ढूँढी। मैं चाहता हूँ कि आप उसे ध्यान से सुनें।"
तब उस बूढ़ी औरत ने अपना झाड़ू नीचे रखा, कुर्सी पर बैठ गई और बताने लगी - "मेरे पति की मलेरिया से मृत्यु हो गई और उसके 3 महीने बाद ही मेरे बेटे की भी सड़क हादसे में मौत हो गई। मेरे पास कोई नहीं था। मेरे जीवन में कुछ नहीं बचा था। मैं सो नहीं पाती थी, खा नहीं पाती थी, मैंने मुस्कुराना बंद कर दिया था।"
मैं स्वयं के जीवन को समाप्त करने की तरकीबें सोचने लगी थी। तब एक दिन,एक छोटा बिल्ली का बच्चा मेरे पीछे लग गया जब मैं काम से घर आ रही थी। बाहर बहुत ठंड थी इसलिए मैंने उस बच्चे को अंदर आने दिया। उस बिल्ली के बच्चे के लिए थोड़े से दूध का इंतजाम किया और वह सारी प्लेट सफाचट कर गया। फिर वह मेरे पैरों से लिपट गया और चाटने लगा।"
"उस दिन बहुत महीनों बाद मैं मुस्कुराई। तब मैंने सोचा यदि इस बिल्ली के बच्चे की सहायता करने से मुझे ख़ुशी मिल सकती है,तो हो सकता है कि दूसरों के लिए कुछ करके मुझे और भी ख़ुशी मिले। इसलिए अगले दिन मैं अपने पड़ोसी, जो कि बीमार था,के लिए कुछ बिस्किट्स बना कर ले गई।"
"हर दिन मैं कुछ नया और कुछ ऐसा करती थी जिससे दूसरों को ख़ुशी मिले और उन्हें खुश देख कर मुझे ख़ुशी मिलती थी।"
"आज,मैंने खुशियाँ ढूँढी हैं, दूसरों को ख़ुशी देकर।"
यह सुन कर वह अमीर औरत रोने लगी। उसके पास वह सब था जो वह पैसे से खरीद सकती थी।
लेकिन उसने वह चीज खो दी थी जो पैसे से नहीं खरीदी जा सकती।
मित्रों! हमारा जीवन इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने खुश हैं अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी वजह से कितने लोग खुश हैं।
तो आईये आज शुभारम्भ करें इस संकल्प के साथ कि आज हम भी किसी न किसी की खुशी का कारण बनें।
कृपया जरूर पढ़ें
ग्रुप के एक साथी ने भेजा, मुझे बहुत पसंद आया, तो आप सब के बीच रख रहा हूं..साथ ही आपके-हमारे संस्थान की website में भी लगा रहा हूं, उम्मीद है आप folower बनकर आगे बढ़ेंगे
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कुछ साल पहले की बात है। मैं अपने एक मित्र का पासपोर्ट बनवाने के लिए दिल्ली के पासपोर्ट ऑफिस गया था। उन दिनों इंटरनेट पर फार्म भरने की सुविधा नहीं थी। पासपोर्ट दफ्तर में दलालों का बोलबाला था,और खुलेआम दलाल पैसे लेकर पासपोर्ट के फार्म बेचने से लेकर उसे भरवाने, जमा करवाने और पासपोर्ट बनवाने का काम करते थे।
मेरे मित्र को किसी कारण से पासपोर्ट की जल्दी थी, लेकिन दलालों के दलदल में फंसना नहीं चाहते थे हम पासपोर्ट दफ्तर पहुंच गए, लाइन में लग कर हमने पासपोर्ट का तत्काल फार्म भी ले लिया पूरा फार्म भर लिया। इस चक्कर में कई घंटे निकल चुके थे, और अब हमें किसी तरह पासपोर्ट की फीस जमा करानी थी हम लाइन में खड़े हुए लेकिन जैसे ही हमारा नंबर आया बाबू ने खिड़की बंद कर दी और कहा कि समय खत्म हो चुका है अब कल आइएगा मैंने उससे मिन्नतें की, उससे कहा कि आज पूरा दिन हमने खर्च किया है और बस अब केवल फीस जमा कराने की बात रह गई है, कृपया फीस ले लीजिए
बाबू बिगड़ गया। कहने लगा, "आपने पूरा दिन खर्च कर दिया तो उसके लिए वो जिम्मेदार है क्या? अरे सरकार ज्यादा लोगों को बहाल करे। मैं तो सुबह से अपना काम ही कर रहा हूं।" मैने बहुत अनुरोध किया पर वो नहीं माना। उसने कहा कि बस दो बजे तक का समय होता है, दो बज गए। अब कुछ नहीं हो सकता मैं समझ रहा था कि सुबह से दलालों का काम वो कर रहा था, लेकिन जैसे ही बिना दलाल वाला काम आया उसने बहाने शुरू कर दिए हैं। पर हम भी अड़े हुए थे कि बिना अपने पद का इस्तेमाल किए और बिना उपर से पैसे खिलाए इस काम को अंजाम देना है। मैं ये भी समझ गया था कि अब कल अगर आए तो कल का भी पूरा दिन निकल ही जाएगा, क्योंकि दलाल हर खिड़की को घेर कर खड़े रहते हैं, और आम आदमी वहां तक पहुंचने में बिलबिला उठता है। खैर, मेरा मित्र बहुत मायूस हुआ और उसने कहा कि चलो अब कल आएंगे। मैंने उसे रोका। कहा कि रुको एक और कोशिश करता हूं।
बाबू अपना थैला लेकर उठ चुका था। मैंने कुछ कहा नहीं, चुपचाप उसके-पीछे हो लिया। वो उसी दफ्तर में तीसरी या चौथी मंजिल पर बनी एक कैंटीन में गया, वहां उसने अपने थैले से लंच बॉक्स निकाला और धीरे-धीरे अकेला खाने लगा। मैं उसके सामने की बेंच पर जाकर बैठ गया। उसने मेरी ओर देखा और बुरा सा मुंह बनाया। मैं उसकी ओर देख कर मुस्कुराया। उससे मैंने पूछा कि रोज घर से खाना लाते हो?
उसने अनमने से कहा कि हां, रोज घर से लाता हूं। मैंने
कहा कि तुम्हारे पास तो बहुत काम है, रोज बहुत से नए-नए लोगों से मिलते होगे? वो पता नहीं क्या समझा और कहने लगा कि हां मैं तो एक से एक बड़े अधिकारियों से मिलता हूं। कई आईएएस, आईपीएस, विधायक और न जाने कौन-कौन रोज यहां आते हैं। मेरी कुर्सी के सामने बड़े-बड़े लोग इंतजार करते हैं। मैंने बहुत गौर से देखा, ऐसा कहते हुए उसके चेहरे पर अहं का भाव था। मैं चुपचाप उसे सुनता रहा। फिर मैंने उससे पूछा कि एक रोटी तुम्हारी प्लेट से मैं भी खा लूं? वो समझ नहीं पाया कि मैं क्या कह रहा हूं। उसने बस हां में सिर हिला दिया मैंने एक रोटी उसकी प्लेट से उठा ली, और सब्जी के साथ खाने लगा। देखता रहा। मैंने उसके खाने की तारीफ की, और कहा कि तुम्हारी पत्नी बहुत ही स्वादिष्ट खाना पकाती है। वो चुप रहा।
मैंने फिर उसे कुरेदा। तुम बहुत महत्वपूर्ण सीट पर बैठे हो। बड़े-बड़े लोग तुम्हारे पास आते हैं। तो क्या तुम अपनी कुर्सी की इज्जत करते हो?
अब वो चौंका। उसने मेरी ओर देख कर पूछा कि इज्जत? मतलब? मैंने
कहा कि तुम बहुत भाग्यशाली हो, तुम्हें इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है, तुम न जाने कितने बड़े-बड़े अफसरों से डील करते हो, लेकिन तुम अपने पद की इज्जत नहीं करते। उसने मुझसे पूछा कि ऐसा कैसे कहा आपने? मैंने कहा कि जो काम दिया गया है उसकी इज्जत करते तो तुम इस तरह रुखे व्यवहार वाले नहीं होते। देखो
तुम्हारा कोई दोस्त भी नहीं है। तुम दफ्तर की कैंटीन में अकेले खाना खाते हो, अपनी कुर्सी पर भी मायूस होकर बैठे रहते हो,लोगों का होता हुआ काम पूरा करने की जगह अटकाने की कोशिश करते हो।
मान लो कोई एकदम दो बजे ही तुम्हारे काउंटर पर पहुंचा तो तुमने इस बात का लिहाज तक नहीं किया कि वो सुबह से लाइऩ में खड़ा रहा होगा, और तुमने फटाक से खिड़की बंद कर दी। जब मैंने तुमसे अनुरोध किया तो तुमने कहा कि सरकार से कहो कि ज्यादा लोगों को बहाल करे। मान लो मैं सरकार से कह कर और लोग बहाल करा लूं, तो तुम्हारी अहमियत घट नहीं जाएगी? हो सकता है तुमसे ये काम ही ले लिया जाए। फिर तुम कैसे आईएएस, आईपीए और विधायकों से मिलोगे? भगवान ने तुम्हें मौका दिया है रिश्ते बनाने के लिए। लेकिन अपना दुर्भाग्य देखो, तुम इसका लाभ उठाने की जगह रिश्ते बिगाड़ रहे हो। मेरा क्या है, कल भी आ जाउंगा, परसों भी आ जाउंगा। ऐसा तो है नहीं कि आज नहीं काम हुआ तो कभी नहीं होगा। तुम नहीं करोगे कोई और बाबू कल करेगा।
पर तुम्हारे पास तो मौका था किसी को अपना अहसानमंद बनाने का। तुम उससे चूक गए। वो खाना छोड़ कर मेरी बातें सुनने लगा था। मैंने कहा कि पैसे तो बहुत कमा लोगे, लेकिन रिश्ते नहीं कमाए तो सब बेकार है। क्या
करोगे पैसों का? अपना व्यवहार ठीक नहीं रखोगे तो तुम्हारे घर वाले भी तुमसे दुखी रहेंगे। यार दोस्त तो नहीं हैं,
ये तो मैं देख ही चुका हूं। मुझे देखो, अपने दफ्तर में कभी अकेला खाना नहीं खाता। यहां भी भूख लगी तो तुम्हारे साथ खाना खाने आ गया। अरे अकेला खाना भी कोई ज़िंदगी है? मेरी बात सुन कर वो रुंआसा हो गया। उसने कहा कि आपने बात सही कही है साहब। मैं अकेला हूं। पत्नी झगड़ा कर मायके चली गई है। बच्चे भी मुझे पसंद नहीं करते। मां है, वो भी कुछ ज्यादा बात नहीं करती। सुबह चार-पांच रोटी बना कर दे देती है, और मैं तनहा खाना खाता हूं।. रात में घर जाने का भी मन नहीं करता। समझ में नहीं आता कि गड़बड़ी कहां है?
मैंने हौले से कहा कि खुद को लोगों से जोड़ो। किसी की मदद कर सकते हो तो करो। देखो मैं यहां अपने दोस्त के पासपोर्ट के लिए आया हूं। मेरे पास तो पासपोर्ट है। मैंने दोस्त की खातिर तुम्हारी मिन्नतें कीं। निस्वार्थ भाव से। इसलिए मेरे पास दोस्त हैं, तुम्हारे पास नहीं हैं। वो उठा और उसने मुझसे कहा कि आप मेरी खिड़की पर पहुंचो। मैं आज ही फार्म जमा करुंगा। मैं नीचे गया, उसने फार्म जमा कर लिया, फीस ले ली। और हफ्ते भर में पासपोर्ट बन गया। उसने मुझसे मेरा नंबर मांगा, मैंने अपना मोबाइल नंबर उसे दे दिया और चला आया।
कल दिवाली पर मेरे पास बहुत से फोन आए। मैंने करीब-करीब सारे नंबर उठाए। सबको हैप्पी दिवाली बोला। उसी में एक नंबर से फोन आया, "रविंद्र कुमार चौधरी बोल रहा हूं साहब।"
मैं एकदम नहीं पहचान सका। उसने कहा कि कई साल पहले आप हमारे पास अपने किसी दोस्त के पासपोर्ट के लिए आए थे, और आपने मेरे साथ रोटी भी खाई थी। आपने कहा था कि पैसे की जगह रिश्ते बनाओ।मुझे एकदम याद आ गया। मैंने कहा हां जी चौधरी साहब कैसे हैं?उसने खुश होकर कहा, "साहब आप उस दिन चले गए, फिर मैं बहुत सोचता रहा।
. मुझे लगा कि पैसे तो सचमुच बहुत लोग दे जाते हैं, लेकिन साथ खाना खाने वाला कोई नहीं मिलता। सब अपने में व्यस्त हैं। मैं साहब अगले ही दिन पत्नी के मायके गया, बहुत मिन्नतें कर उसे घर लाया। वो मान ही नहीं रही थी।वो खाना खाने बैठी तो मैंने उसकी प्लेट से एक रोटी उठा ली, कहा कि साथ खिलाओगी? वो हैरान थी। रोने लगी। मेरे साथ चली आई। बच्चे भी साथ चले आए।
साहब अब मैं पैसे नहीं कमाता। रिश्ते कमाता हूं। जो आता है उसका काम कर देता हूं।साहब आज आपको हैप्पी दिवाली बोलने के लिए फोन किया है।अगल महीने बिटिया की शादी है। आपको आना है।अपना पता भेज दीजिएगा। मैं और मेरी पत्नी आपके पास आएंगे।
मेरी पत्नी ने मुझसे पूछा था कि ये पासपोर्ट दफ्तर में रिश्ते कमाना कहां से सीखे? तो मैंने पूरी कहानी बताई थी। आप किसी से नहीं मिले लेकिन मेरे घर में आपने रिश्ता जोड़ लिया है।सब आपको जानते है बहुत दिनों से फोन करने की सोचता था, लेकिन हिम्मत नहीं होती थी
आज दिवाली का मौका निकाल कर कर रहा हूं। शादी में आपको आना है बिटिया को आशीर्वाद देने। रिश्ता जोड़ा है आपने। मुझे यकीन है आप आएंगे
वो बोलता जा रहा था, मैं सुनता जा रहा था। सोचा नहीं था कि सचमुच उसकी ज़िंदगी में भी पैसों पर रिश्ता भारी पड़ेगा। लेकिन मेरा कहा सच साबित हुआ। आदमी भावनाओं से संचालित होता है। कारणों से नहीं। कारण से तो मशीनें चला करती हैं
पैसा इन्सान के लिए बनाया गया है, इन्सान पैैसै के लिए नहीं बनाया गया फिर दोस्ती में कोई पद, धन-दौलत, अभिमान व पद के गुरुर में दुसरो के बहकावे मे आना, व सारी कसमें भुलाकर अपनो को उनके बहकावे में छोड़ना, जिन्होंने आपके कंधे पर बंदूक रख, अपना हित
देखा, जिसका कोई वजूद नही,क्योंकि वो अपनो के ही नही हो सके, वो आपके क्या होंगे
इसलिए::
जिंदगी में ऐसा गुरुर मत पालना, जहाँ फिर से किसी को आपसे आहत होना पड़े, पुनः आपकी बीबी, परिवार से तुम्हे जुदा होना पड़े।
याद रखना, पैसा तो सबके पास हैं, किसी के पास कम है, तो किसी के पास ज्यादा है,ये जरूर सोचना कि रिश्तों की बुनियाद ओर उसकी सच्चाई में आज हमने क्या खोया ओर क्या पाया।।।।।।
All story is very useful and concern life
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
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